स्वाधीनता आंदोलन के ‘गुमनाम नायकों’ को समाज के सामने लाएगा संघ
स्वाधीनता आंदोलन में समाज के सभी वर्ग, क्षेत्र व भाषा का अतुलनीय योगदान था, लेकिन नाम कुछ ही का हुआ। कुछ ही लोगोें को आजादी दिलाने का श्रेय मिला। बाकि इतिहास में गुमनाम हो गए। ऐसे लोगों के बलिदान को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समाज के सामने लाने की तैयारी की है। यह प्रयास इसलिए अधिक है क्योंकि कुछ क्षेत्र, भाषा व वर्ग में खुद के उपेक्षित होने का भान होता है। वे अपनी पीछे की पीढ़ियों के देश से जुड़ाव को भुल रहे हैं। इससे संघर्ष जन्म ले रहा है। ऐसे में संघ का प्रयास है कि इन गुमनाम आजादी के नायकों की कहानी और नाटकों को समाज के सामने लाकर आपसी मतभेदों को भुलाते हुए सभी को राष्ट्रभक्ति की एक डोर में पिरोई जाएं।
संस्कार भारती के अखिल भारतीय मंत्री चेतन जोशी ने बताया कि संगठन की नाट्य विधा इकाई द्वारा इस वर्ष के अंत तक में देशभर में 75 नाटकों के मंचन का लक्ष्य रखा गया है। नाट्य विधा इकाई की टोलियां हर प्रांत में है। उनके सहयोग से इनका मंचन होगा।
एक सप्ताह पहले हैदराबाद (भाग्यनगर) में संघ परिवार की तीन दिवसीय समन्वय बैठक मेें इसपर विस्तृत चर्चा हुई थी। इस बैठक में संघ के सह सरकार्यवाह डा. मनमोहन वैद्य ने कहा था कि स्वतंत्रता केवल कुछ लोगों के कारण नहीं मिली, बल्कि इसमें समाज के प्रत्येक वर्ग के सैकड़ों, हजारों लोगों का सहभाग रहा है। इन कहानी और नाटकों के जरिए स्वातंत्र्य का इतिहास व संघर्ष का इतिहास समाज के समक्ष पहुंचाने का प्रयत्न होगा।
प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक लेखक व चिंतक जे. नंदकुमार ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के संबंध में अनेक भ्रम स्थापित करने के प्रयास किए गए हैं। ब्रिटिश और औपनिवेशिक मानसिकता के लेखकों ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन केवल उत्तर भारत तक सीमित था और यह केवल अंग्रेजी पढ़े-लिखे तथाकथित उच्च वर्ग का आंदोलन था। जबकि इसमें किसानों व आदिवासियों समेत समाज के सभी वर्ग ने हिस्सा लिया था। ऐसे में कहानियों के माध्यम से कोशिश यह है कि शोध करके भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के नये तथ्यों को समाज के सामने लाना चाहिए।