जानिए- आखिर रूस से तनाव में यूक्रेन की क्यों कमजोरी बना है डोनबास क्षेत्र, क्या टाला जा सकता है युद्ध का संकट?
रूस और यूक्रेन के बीच जहां किसी भी समय युद्ध छिड़ने की आशंका जताई जा रही है वहीं जानकार मानते हैं कि मुमकिन है कि ये युद्ध टल जाए। जानकारों का कहना है कि रूस पहले ही ये साफ कर चुका है कि उसका यूक्रेन पर हमले का कोई इरादा नहीं है। इसकी दो बड़ी वजह हैं। पहली वजह जो उसको चाहिए वो क्रीमिया उसको मिल चुका है। दूसरी बड़ी वजह ईस्ट यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र है। यहां पर अधिकतर रूस के समर्थक रहते हैं और इन्होंने सात वर्षों तक संघर्ष करने के बाद जीत हासिल की।
मिंस समझौता खास
वर्ष 2014 में मिंस समझौता हुआ जिसके तहत इस पूरे क्षेत्र को एटानमी मिली हुई है। इन दोनों के ही अपने मायने हैं। यही वजह है कि युद्ध के मुहाने पर होने के बाद भी काफी संभावना इस बात की है कि युद्ध न हो। उनके मुताबिक काफी हद तक मामला भी सुलझा हुआ है। इसके लिए यूक्रेन को मिंस समझौते का पालन करना होगा।
एक्सपर्ट व्यू
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अनुराधा शिनोए का कहना है कि रूस को केवल आपत्ति यूक्रेन के नाटो संगठन में मिलने या उसका सदस्य बनने से है। यदि यूक्रेन इस संगठन का सदस्य बन जाता है तो नाटो की मिसाइलें सीमा तैनात की जा सकेंगी। युद्ध होने की सूरत में ये मिसाइलें एक मिनट से भी कम समय में मास्को में हमला कर सकती हैं। हालांकि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की भी युद्ध के पक्षधर नहीं हैं। वो जानते हैं कि इस युद्ध में केवल यूक्रेन का ही नुकसान होना तय है।
क्या सोचते हैं पश्चिमी देश
वहीं पश्चिम देश समेत अमेरिका ये मानता है कि यूक्रेन एक आजाद राष्ट्र है और उसे अपने फैसले खुद लेने का पूरा अधिकार है। इसमें बाहरी शक्तियों या किसी अन्य राष्ट्र का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, बल्कि यूक्रेन की संप्रभुता का सभी को सम्मान करना चाहिए। प्रोफेसर शिनोए का कहना है कि आने वाले समय में यूक्रेन में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं जिसमें जेलेंस्की के भाग्य का भी फैसला होगा। जेलेंस्की खुद तख्ता पलट कर सत्ता तक पहुंचे हैं।
रूस की गैस पाइपलाइन बंद करने की मंशा
अमेरिका का इस पूरे प्रकरण में ये भी मंतव्य है कि यूरोप में आ रही रूस की गैस और तेल पाइपलाइन बंद हो जाएं और उन्हें इसका मौका मिले। इससे न सिर्फ रूस कमजोर होगा बल्कि अमेरिका को मजबूती मिलेगी। यदि ऐसा करने में अमेरिका कामयाब हो जाता है तो इससे यूरोप में जहां उसका दबदबा कायम होगा वहीं रूस को अलग-थलग करने में भी मदद मिलेगी और राजनीतिक दृष्टि से रूस कमजोर भी होगा।
यदि हो कोई समझौता
प्रोफेसर शिनोए के मुताबिक डीएस्केलेशन तब भी संभव है जब दोनों देशों के बीच कोई समझौता हो जाए। इसमें ये भी संभव है कि दोनों देशों के बीच एक ऐसा जोन बन जाए जहां पर सैनिकों की मौजूदगी को प्रतिबंधित कर दिया जाए। यूरोप के कई देश नहीं चाहते हैं कि वो इस युद्ध को झेलें। इसका उलटा असर न सिर्फ उनके क्लाइमेट पर बल्कि उनकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।
Source News: jagran