19 वीं सदी के समाज सुधारकों में महर्षि दयानन्द जी का नाम अग्रणी-आचार्य हरिओम शास्त्री
दिल्ली, मामेंद्र कुमार (चीफ एडिटर डिस्कवरी न्यूज 24) : केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “महर्षि दयानन्द जी की शास्त्रीय विशेषता ” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया । यह करोना काल में 371 वा वेबिनार था। वैदिक विद्वान आचार्य हरिओम शास्त्री ने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने किसी भी शास्त्र को पढ़ने और समझने के लिए हमें तर्क और प्रमाण के रूप में दो अस्त्र दिये हैं और कहा है कि तुम आंखें बन्द करके किसी ग्रन्थ,सन्त, महन्त, गुरु और आचार्य की बातें न मानो। बल्कि उन्हें तर्क और प्रमाण की कसौटी पर कसो और फिर शुद्ध होने पर ही उन्हें मानना और अशुद्ध होने पर उन्हें छोड़ देना फिर चाहे वे किसी के द्वारा भी कहे गए हों। इस तरह की बातें वेदों की सर्वोच्च साक्षी में कहने वाले महर्षि जैमिनी के केवल स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ही हैं।
इसीलिए तो उन्हें ऋषि अथवा महर्षि उपनाम से भी सम्बोधित करते हैं। अन्यथा आदि शंकराचार्य स्वामी, स्वामी रामानुजाचार्य, स्वामी बल्लभाचार्य, स्वामी निम्बार्काचार्य आदि विभूतियों से लेकर हिन्दू धर्म के तमाम स्वनामधन्य साधुओं, तपस्वियों, महामहोपाध्याय विद्वानों तथा पंडितों ने अपनी बातें कहने के लिए नाम तो वेदों का लिया परन्तु मत-पंथ अपना चलाया। इन सभी आचार्यों के पथ पर चलने वाले पंडितों ने भी स्वामी दयानन्द जी से नारियों, शूद्रों, दलितों और आदिवासियों को वेदों का ज्ञान प्राप्त करने से,यज्ञ करने से, सत्कर्म करने से,यज्ञ में पशु बलि देने से,जन्म से जातिप्रथा,सती प्रथा, विधवा विवाह आदि कुप्रथाएं वेदों का नाम लेकर नाम लेकर मना किया अथवा प्रथा चलाई। इससे वेदों के प्रति इन सभी वर्गों में अश्रद्धा पैदा हुई और फिर ये लोग विधर्मियों के बहकावे में आकर अपना धर्मपरिवर्तन करने लगे।
यह विचार जब ऋषि दयानन्द जी के सामने आया तो उन्होंने मठाधीशों और पुराणपन्थियों से कहा कि यह वेदों का विचार नहीं है और है तो दिखाओ कि वेदों में कहां लिखा है? आचार्य शंकर और भक्ति काल के अनेक आचार्यों, भक्तों सहित सभी पण्डितों तथा विद्वानों ने नारियों, शूद्रों और दलितों के बारे में वेदों का नाम लेकर अपनी बातें कहीं परन्तु कभी किसी ने उनसे यह नहीं पूछा कि दिखाओ वेदों में यह कहां लिखा है?इसी कारण हिन्दुओं का बढ़चढ कर धर्मपरिवर्तन हुआ था। महात्मा बुद्ध को भी वेदों को न पढ़ने और न समझने के कारण इन्हीं लोगों ने वेद मार्ग से भटकाकर वेद,यज्ञ और वैदिक संस्कृति का निन्दक और कट्टर विरोधी बना दिया। ऋषि दयानन्द जी ने इन विभूतियों की बातें सुनकर वेदनिन्दक होने की अपेक्षा उनसे उनकी विचारधारा के समर्थन में वेदों का प्रमाण मांगा।
ऋषि दयानन्द तो अपनी हर बात के समर्थन में वेदों व वैदिक शास्त्रों का प्रमाण देते थे। यही उनकी शास्त्रीय विशेषता है। अतः कवि कहते हैं- वेदों की वंशी हाथ में लेकर, महर्षि ने जब गीत सुनाये। सारे जहां में छा गई मस्ती, झूम उठे सब अपने पराये।। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि महर्षि दयानंद का कोई सानी नहीं हुआ उन्होंने सोचने समझने व तर्क की शक्ति प्रदान की । मुख्य अतिथि वसु मित्र सत्यार्थी व अध्यक्ष योगाचार्य हरिओम शास्त्री(ग्रेटर नोएडा) ने भी महर्षि दयानंद जी की विशेषताओं का वर्णन किया । राष्ट्रीय मंत्री प्रवीन आर्य ने कहा कि सत्य असत्य के निर्णय के लिए उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। गायिका प्रवीना ठक्कर, उर्मिला आर्य,रजनी गर्ग,रजनी चुघ, कमला हंस,जनक अरोड़ा, प्रतिभा कटारिया, सुमित्रा गुप्ता, कुसुम भंड़ारी, रचना वर्मा,सुनीता अरोड़ा, विजय वधावन, ईश्वर देवी आदि ने मधुर भजन सुनाये ।