नववर्ष विक्रमी संवत की महत्ता पर गोष्ठी सम्पन्न
मामेंद्र कुमार (चीफ एडिटर डिस्कवरी न्यूज 24) : केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “नववर्ष विक्रमी संवत की महत्ता” पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया । यह कॅरोना काल मे 381 वा वेबिनार था । योगाचार्य श्रुति सेतिया ने कहा कि शुभ कार्य समय की काल गणना केवल भारतीय संस्कृति में ही विद्यमान है । संवत्सर अर्थात इस सृष्टि का पहला उषाकाल । समग्र जगत का प्रथम सूर्योदय । भारतीय के लिए गर्व का दिन है क्योंकि उसका प्रारंभ किसी ऋषि- मुनि ,महात्मा आदि की जन्मतिथि आदि से नहीं है, बल्कि जिस क्षण सृष्टि शुरू हुई उसी समय से संवत्सर का प्रारंभ हो गया । पुरातन धर्म ग्रंथों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि ही सृष्टि की जन्म तिथि है , इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि विक्रम संवत का पहला दिन, प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक, नवरात्र स्थापना का प्रथम दिवस, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु गुरु अंगद देव जी का जन्म दिवस ,आर्य समाज स्थापना दिवस, संत झूलेलाल दिवस, शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस, युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन है। वर्तमान भारत में जिस प्रकार से सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है
उसके चलते हमारी परंपराओं पर भी गहरा आघात हुआ है । लेकिन आज भी समाज का हर वर्ग भारतीय कालगणना का ही सहारा लेता है। हमारे त्यौहार भी प्रकृति और गृह नक्षत्रों पर ही आधारित होते हैं , इसलिए कहा जा सकता है कि नववर्ष प्रतिपदा पूर्णता वैज्ञानिक और प्राकृतिक नववर्ष है। भारत की संस्कृति मानव जीवन को सुंदर और सुखमय बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है । वर्तमान में भले ही हम स्वतंत्र हो गए हो, लेकिन पराधीनता का काला साया एक आवरण की तरह हमारे सिर पर विद्यमान है जिसके चलते हम उस राह का अनुकरण करने की ओर प्रवृत्त हुए हैं जो हमारे संस्कार के साथ एकरस नहीं है। नव वर्ष अंग्रेजी पद्धति से 1 जनवरी को माना जाने वाला वर्ष कहीं से नहीं लगता ।। इसके नाम पर किया जाने वाला मनोरंजन फूहड़ ता के अलावा कुछ भी नहीं है। आधुनिकता के नाम पर समाज का अभिजात्य वर्ग यह सब कुछ कर रहा है ।
जो सभ्य और भारतीय समाज के लिए स्वीकार करने योग्य नहीं है । भारतीय काल गणना के अनुसार मनाए जाने वाले त्योहारों के पीछे कोई ना कोई प्रेरणा विद्यमान है । हम जानते हैं कि हिंदी के अंतिम मास फाल्गुन में वातावरण भी वर्ष समाप्ति का संदेश देता है। साथ ही नव वर्ष के प्रथम दिन से ही वातावरण सुखद हो जाता है। हमारे ऋषि – मुनि कितने श्रेष्ठ होंगे, जिन्होंने ऐसी कालगणना विकसित की, जिसमें कल क्या होगा , इस बात की पूरी जानकारी समाहित है। अंग्रेजी शिक्षा- दीक्षा ओर पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज भले ही सर्वत्र ईसवी संवत का बोलबाला हो ,परंतु वास्तविकता यह भी है कि देश के सांस्कृतिक पर्व उत्सव महापुरुषों की जन्म तिथि या आज भी भारत की काल गणना के हिसाब से बनाई जाती हैं। नव वर्ष का अध्ययन किया जाए तो चारों तरफ नई उमंग की धारा प्रवाहित होते हुए दिखाई देती है ।
जहां प्रकृति अपने पुराने आवरण को उतार कर नए परिवेश में आने को आतुर दिखाई देती है। नव वर्ष के प्रथम दिवस पूजा -पाठ करने से असीमित फल की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि शुभ कार्य के लिए शुभ समय की आवश्यकता होती है और शुभ समय निकालने की विधा केवल भारतीय कालगणना में ही समाहित है । विक्रमादित्य ने भारत की तमाम काल गणना परक सांस्कृतिक परंपराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नव संवत्सर को चलाने की परंपरा शुरू की थी। तभी से समूचा भारत इस तिथि का प्रतिवर्ष अभिनंदन करता है । ऐसे में विचारणीय तथ्य यह है कि हम जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं या फिर जड़ बनकर पश्चिम के पीछे भागना चाहते हैं । आज चमक-दमक के प्रति बढ़ता आकर्षण भारतीयता से दूर कर रहा है, लेकिन यह भी एक सत्य है कि दुनिया के तमाम देशों के नागरिकों को भारतीयता रास आने लगी है ।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि हमे पुरातन भारतीय संस्कृति पर गर्व करना चाहिए । मुख्य अतिथि राजेश मेहंदीरत्ता व अध्यक्ष उर्मिला आर्या(गुरुगांव) ने भी अपनी जड़ों से जुडने का आह्वान किया । राष्ट्रीय मंत्री प्रवीन आर्य ने कहा कि भारतीय काल गणना पूर्णतया वैज्ञानिक है । गायक रविन्द्र गुप्ता, प्रवीना ठक्कर, कमलेश चांदना, आशा ढींगरा, दीप्ति सपरा, सुषमा बजाज,ईश्वर देवी,कमला हंस,रचना वर्मा,सुनीता अरोड़ा, आशा आर्या,राजश्री यादव,रजनी चुघ, पिंकी आर्या,रीता जयहिंद आदि के मधुर भजन हुए ।