” कर्म,अकर्म और विकर्म का मर्म ” पर गोष्ठी सम्पन्न

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मामेंद्र कुमार (चीफ एडिटर डिस्कवरी न्यूज 24) : केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “कर्म,अकर्म, विकर्म का मर्म” विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया । यह कॅरोना काल में 384 वा वेबिनार था । मुख्य वक्ता आचार्य चंद्रशेखर शर्मा (ग्वालियर) ने कहा कि मानव जीवन कर्म प्रधान है।कर्म करना मानव का प्रथम कर्तव्य है।कर्म क्रिया का शुद्ध एवं दिव्य स्वरूप है।कर्म करना मानव का पूर्ण अधिकार है।कर्म के तीन भेद हैं- नित्य कर्म,नैमित्तिक कर्म,काम्य कर्म।
हमारा प्रत्येक कर्म परिशुद्ध एवं परिमार्जित हो।जब कर्म उदात्तभाव,परमार्थभाव और परमकल्याणभाव समाहित हो जाता है, तो ऐसा परोपकार से परिपूर्ण यज्ञीयकर्म बंधन से मुक्त करके मुक्ति मार्ग को प्रशस्त करता है।

आचार्य जी ने अकर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि कर्म के विना जीवन में गति नहीं है।कुछ न करने का भाव स्वयं का अपमान है।खाना,पीना,जागना एवं सोना आदि सब क्रियाएँ कर्म है। इसलिए निर्लिप्त,निर्विकार एवं निरभिमान होकर कर्म करना ही कर्म में अकर्म है। विकर्म के दो भाव हैं,प्रथम- निंदनीय कर्म और शास्त्र प्रतिकूल कर्म विकर्म है। दूसरा- विशेष कर्म,विशुद्ध कर्म,विशिष्ट कर्म ही विकर्म है। भारत के महान आचार्यों ने इन तीनों शब्दों की विवेचना विस्तार से की है।जिज्ञासु साधक भगवद् गीता में इस विषय को स्वयं पढ़ें ,समझें एवं आत्मसात् करें।

केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि पुरुषार्थ ही इस जीवन में सब कामना पूरी करता है मनचाहा फल उसने पाया जो आलसी बनकर पड़ा न रहा । अतः मनुष्य को सदैव कर्म करते रहना चाहिए । राष्ट्रीय मंत्री प्रवीन आर्य व अध्यक्ष सुरेन्द्र बुद्धिराजा ने कहा कि वेद,गीता भी कर्म में लगे रहने का मनुष्य को संदेश देते हैं । गायक रविन्द्र गुप्ता, राजेश मेहंदीरत्ता, विजय खुल्लर, ईश्वर देवी,रजनी चुघ, सुमित्रा गुप्ता, कृष्णा पाहुजा, कौशल्या अरोड़ा, प्रवीना ठक्कर, कुसुम भंड़ारी, मिथिलेश गौड, विजय लक्ष्मी आर्या,शोभा बत्रा,उमा मिगलानी आदि के मधुर भजन हुए ।