परमात्मा की भक्ति करने से बुद्धि,बल,ओज प्राप्त होता है -विदुषी श्रुति सेतिया

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मामेंद्र कुमार (चीफ एडिटर डिस्कवरी न्यूज 24) :  केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “ईश्वर भक्ति क्यों करें ” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।यह करोना काल में 426 वाँ वेबिनार था। वैदिक विदुषी श्रुति सेतिया ने कहा कि परमात्मा की भक्ति करने से बुद्धि,बल,तेज व पराक्रम की प्राप्ति होती है क्योंकि जो जिसकी भक्ति करेगा वैसे ही गुण उसके जीवन में आयेंगे।उन्होंने कहा कि प्रश्न उत्पन्न होता है कि हम परमात्मा की भक्ति क्यों करें? हम जड़ पदार्थों अथवा अल्प मनुष्यों की भक्ति क्यों ना करें? ईश्वर भक्ति से हमें क्या लाभ हो सकते हैं?यह प्रश्न वास्तव में बड़ा विचारणीय तथा गंभीर है।जो जिसका चिंतन करता है वह उसी के रंग में रंग जाता है,जो जिसका अधिक ध्यान करता है वह उसी का स्वभाव ग्रहण करता जाता है। यदि हम मनुष्यों की भक्ति करते हैं तो इसमें संदेह नहीं कि हम में उन उपास्य देवताओं के गुण आवेंगे, क्योंकि मनुष्य सारे के सारे ही अल्प ज्ञानी होते हैं,उनमें कमजोरियां होती है,इसलिए यह स्वाभाविक है कि मनुष्यों की पूजा और भक्ति करने से जहां हम उनके गुणों को ग्रहण करते हैं वहां अवगुण भी हम में आ जाते हैं। जड़ पदार्थों की पूजा करने से मनुष्य के अंदर सूक्ष्म विचारों का नाश हो जाता है, क्योंकि वह जड़ की न्यायी जड़ बन जाता है।

पूजा के लिए आवश्यकता है एक महाशक्ति की,भक्ति के लिए आवश्यकता है एक सर्व व्यापक सर्व शक्तिमान,पाप नाशक शक्ति के भंडार परमात्मा की,भक्ति के लिए आवश्यकता है एक सुध बुध मुक्त स्वभाव सच्चिदानंद की।वेद भगवान कहते हैं कि परमात्मा शुक्र अर्थात आनंद है,वह घावों -आदि क्लेश से रहित है,दुख का नाशक है,सुख का दाता है,वह निराकार है,वह नस- नाड़ियों के बंधन से मुक्त है,उसकी कोई मूर्ति नहीं,वह शुद्ध पवित्र है,पाप रहित है।वेद भगवान कहते हैं कि ऐसे ही परमात्मा की भक्ति और पूजा करके मनुष्य का जीवन सफल हो सकता है अन्यथा नहीं।हम उस सर्वशक्तिमान की पूजा करते हैं व ह्रदय से पूजा करते हैं।प्रेम से भक्ति करते हैं और उसी के कारण हमारी आत्मा बलवान होती जाती है और पुष्ट होती जाती है।वेद भगवान कहते हैं- य आत्मदा बलदा “यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्यदेवा:” जड़ पदार्थों की पूजा से आत्मा को कदापि बल प्राप्त नहीं हो सकता,क्योंकि ईश्वररीये नियम है कि जहां जीवन होता है वहां से ही दूसरों को जीवन मिला करता है,जहां शक्ति होती है वहीं से दूसरों को शक्ति मिला करती है।जड़ पदार्थों में जब जीवन ही नहीं है

 

 

तो उनकी पूजा करके एक चेतन आत्मा कैसे जीवन पा सकता है? उसको क्या बल या ढाढस मिल सकता है?कुछ भी नहीं।इसलिए वेद भगवान कहते हैं कि भक्ति के योग्य केवल एक परमात्मा ही हैं। अज्ञानी लोग अज्ञान वश जड़ पदार्थों की पूजा करते हैं।यदि हम परमात्मा की भक्ति करते हैं तो हम में जीवन आता है,उत्साह आता है,तेज आता है,बल और पराक्रम आता है,क्योंकि यह एक साधारण बात है कि जितना हम अल्प वस्तुओं की भक्ति करेंगे उतना ही हमारे विचार,हमारा जीवन,हमारा तेज,हमारा बल भी अल्प होगा।परंतु जहां तक एक महान और प्रभावशाली जीवन के आधार,आत्मा के आधार,सर्व शक्तिमान,तेजोमय परमात्मा की पूजा करेंगे उतने ही हम महान होते जाएंगे।स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्याभिविनय पुस्तक की रचना ही ईश्वर के प्रति भाव रखने वाले भक्तों,उपासकों व साधकों के लिए ईश्वर की स्तुति और प्रार्थना की आवश्यकता की पूर्ति के लिए की है।जब हम ईश्वर की स्तुति करते हैं तो हमारे गुण,कर्म व स्वभाव में सुधार होता है।ऐसा होने से हमारी स्थिति से पूर्व जो दुर्गुण दुर्व्यसन और दु:ख होते हैं उनमें स्तुति के प्रभाव से स्वतः सुधार होता जाता है।

 

अध्यक्षता कर रही अंजु आहूजा (चंडीगढ़) ने कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने निराकार सर्वशक्तिमान परमात्मा की उपासना करने पर बल दिया हैI केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के अध्यक्ष अनिल आर्य ने संचालन करते हुए एक ईश्वर की स्तुति वा उपासना करने का आह्वान किया। राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया और कहा कि हम सी सी कैमरे की तरह उसकी निगरानी में रहते हैं। गायिका कुसुम भंडारी,प्रवीना ठक्कर, कमलेश चांदना,कमला हंस,रचना वर्मा,विजय वधावन, ईश्वर देवी,कृष्णा पाहुजा, आशाआर्या,प्रतिभा कटारिया, रेखा गौतम आदि के मधुर भजन हुए।