चर्चाओं के बीच : नेहा बंद्योपाध्याय
MAMENDRA KUMAR (CHIEF EDITOR DISCOVERY NEWS 24) : इंटरनेशनल इंडियन फोक आर्ट गैलरी (ऑस्ट्रेलिया शाखा) द्वारा फोर्ट, मुंबई स्थित जहांगीर आर्ट गैलरी के हीरजी गैलरी में आयोजित इंडियन फोक आर्ट एग्जिबिशन के सफल आयोजन के बाद से भारतीय लोक कला संस्कृति के प्रचार व प्रसार की दिशा में अग्रसर नेहा बंद्योपाध्याय इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
बंगाल, झारखंड और महाराष्ट्र की धरती से संयुक्त रूप से जुड़ी फैशन डिजाइनर/ चित्रकार नेहा बंद्योपाध्याय भारतीय फिल्म जगत में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के के ग्रैंडसन (नाती) चंद्रशेखर पुसालकर की दत्तकपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। नेहा बंद्योपाध्याय को मधुबनी पेंटिंग और वंचित महिलाओं और छात्राओं को प्रशिक्षण देने की दिशा में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए ‘द ग्रेट इंडियन वूमेन अवार्ड 2021’ और ‘सरस्वतीबाई दादा साहेब फाल्के इंटरनेशनल आइकॉनिक अवार्ड 2021’ से नवाजा जा चुका है। ड्रेस डिजाइनिंग और आभूषण तथा संगीत के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के बदौलत नेहा कई अवॉर्ड पा चुकी हैं। बड़े फैशन डिजाइनिंग संस्थान के प्रमुख के रूप में अपनी संचालन क्षमता का परिचय देते हुए नेहा ने संस्थान का सफलतापूर्वक विस्तार और विकास किया, छात्रों की संख्या 5 से बढ़ाकर लगभग 400 कर दी।
एक वर्ष से भी कम समय में 400 छात्र को प्रशिक्षित किया जिसके फलस्वरूप उन्हें टेक्सटाइल डिजाइनिंग और इंस्टीट्यूट के लिए लायन क्लब पुरस्कार भी मिला। एमबीए (फाइनेंस), एम.एससी, टेक्सटाइल डिजाइनिंग और बैचलर ऑफ एजुकेशन में डिग्री ले चुकी नेहा बंद्योपाध्याय भारतीय लोक कला को बढ़ावा देने और मधुबनी, वारली पेंटिंग और संगीत के क्षेत्र से जुड़े समुदाय का हिस्सा बनने वाले सैकड़ों कलाकारों का समर्थन करने के लिए कोर टीम के हिस्से के रूप में अंतर्राष्ट्रीय भारतीय लोक गैलरी में उपस्थित रहती हैं साथ ही साथ कला उत्सव और शिल्प मेले से लेकर लोक, पारंपरिक और आधुनिक भारतीय कला से संबंधित एग्जिबिशन में भी सेवा, सहयोग व समर्पण की भावना के साथ शामिल रहती हैं। नेहा बंद्योपाध्याय मृदुभाषी, दयालु, मेहनती और एक भावुक कला प्रेमी हैं। वह कहती हैं, “कला ने मुझे बचपन से अब तक बहुत कुछ दिया है, कला के प्रति समर्पित रहने की वजह से दुनिया भर के लोगों ने मुझे जाना है, इस कला यात्रा के क्रम में मुझे कई महान लोगों से मिलने का मौका मिला, फलस्वरूप मेरी पहचान बनी और अब कुछ वापस देने की मेरी बारी है।”
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय