बोर्ड परीक्षाएं रद्द करना नीतिगत मामला, क्या अदालत हस्तक्षेप कर सकती है? उच्च न्यायालय
बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कारण पूरे देश में 10वीं और 12वीं कक्षाओं की परीक्षाएं रद्द की जा रही हैं। इसके साथ ही अदालत ने सवाल किया कि क्या अदालत ऐसे नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है। अदालत ने सवाल किया कि ऐसे समय में जब कोरोना वायरस के कारण लोगों के एकत्र होने से बचा जा रहा है, क्या परीक्षाएं देने के लिए बच्चों को एक जगह एकत्र करना उचित है।
परीक्षाएं रद्द किए जाने के फैसले में क्या मनमानी है
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने पुणे के प्रोफेसर धनंजय कुलकर्णी से सवाल किया कि परीक्षाएं रद्द किए जाने के फैसले में क्या मनमानी है। कुलकर्णी ने कोविड मामलों में वृद्धि के कारण इस साल एसएससी (कक्षा 10) बोर्ड परीक्षा रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है।
याचिकाकर्ता जिम्मेदारी लेने के इच्छुक हैं?
मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘आप क्यों कहते हैं कि ये परीक्षाएं होनी चाहिए? कल अगर छात्र (कोविड से) प्रभावित होते हैं तो इसकी कौन जिम्मेदारी लेगा? क्या आप (याचिकाकर्ता) जिम्मेदारी लेने के इच्छुक हैं?’ अदालत ने कहा कि बोर्ड परीक्षाएं पूरे देश में रद्द की जा रही हैं और विशेषज्ञों के निकाय निर्णय ले रहे हैं।
हमारे हस्तक्षेप के लिए कोई आधार नहीं
पीठ ने कहा, ‘यह नीति का मामला है जिसमें कार्यपालिका ने फैसला किया है। यह आपको (याचिकाकर्ता) या कभी-कभी हमें भी मूर्खतापूर्ण लग सकता है, लेकिन यह हमारे हस्तक्षेप के लिए कोई आधार नहीं है।’ अदालत ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है या फैसला मनमाना है तो हम हस्तक्षेप कर सकते हैं।