स्टेरॉयड नहीं एंटीबायोटिक की ओवरडोज हो सकती है फंगस की वजह, दांत-जबड़ों में दर्द हो तो रहें सतर्क; दिमाग तक न पहुंचे संक्रमण

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ब्लैक फंगस का कहर जारी है। अब तक कई मरीजों की फंगस जान ले चुका है और डॉक्टर्स लगातार इसका काट ढूंढने के प्रयास में है। मगर विशेषज्ञों ने यह पाया है कि शरीर में एंटीबायोटिक की मात्रा बढ़ने से भी ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ रहा है। वहीं, चौकाने वाली बात यह है कि फंगस की चपेट में आए तमाम रोगी ऐसे भी हैं, जिन्होंने स्टेरॉयड थेरेपी नहीं ली। साथ ही कोविड के दौरान वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी नहीं रहे थे। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि होम आइसोलेशन में रहे मरीजों ने एंटीबायोटिक की मनमानी डोज ली। जिसका असर यह रहा कि शरीर के गुड बैक्टीरिया का खात्मा हो गया। लिहाजा, वातावरण में मौजूद फंगस का व्यक्ति पर हमला करना आसान हो गया है। यूपी में सबसे अधिक ब्लैक फंगस के मरीज राजधानी लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में भर्ती हुए। ब्लैक फंगस के मरीजों के इलाज में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शीतल वर्मा भी शामिल रही। उन्होंने कोरोना को हराकर ब्लैक फंगस की वजह से भर्ती हुए मरीजों की हिस्ट्री जुटाई और यह पाया कि तमाम मरीजों ने स्टेरॉयड व ऑक्सीजन थेरेपी नहीं ली थी। यही कारण है कि ब्लैक फंगस के पीछे एंटीबायोटिक ओवरडोज को वह बड़ा कारण मानती हैं।

डॉ. शीतल वर्मा – केजीएमयू

क्या कहते हैं माइक्रोबायोलॉजी के विशेषज्ञ ?
डॉ शीतल के अनुसार होम आइसोलेशन में मरीजों ने मनमाने तरीके से दो से तीन एंटीबायोटिक (अजिथ्रोमायसिन, डॉक्सीसाइक्लिन जैसे) का कोर्स लंबे वक्त तक चलाया। ऐसे में एंटीबायोटिक की ओवर डोज से गुड बैक्टीरिया खत्म हो गए। यह भी ब्लैक फंगस को बढ़ावा देने के कारकों में से एक है। हालांकि, अब जब सरकार ने कोरोना मरीजों के लिए जारी किए गए प्रिस्क्रिप्शन से अजिथ्रोमायसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, क्लोरोक्वीन,आइवरमेक्टिन जैसी एंटीबायोटिक दवा को हटा दिया है। तबसे म्यूकर माइकोसिस के मामलों में जरूर कमी आएगी।

बिना चिकित्सक की सलाह से न करे एंटीबायोटिक दवा का सेवन
विशेषज्ञों के मुताबिक, सेहतमंद रहने के लिए गुड बैक्टीरिया का ख्याल रखना होगा। ऐसे में मरीजों के इलाज वक्त दवाओं की डोज पर ध्यान रखना होगा। बिना जरूरत के हाई एंटीबायोटिक न लें। इससे गुड बैक्टीरिया का बचाव होगा। इनके रहने से शरीर के तमाम इंफेक्शन से बचाव हो सकेगा।

डॉ अरविंद राजवंशी – निदेशक,एम्स रायबरेली

लाइलाज नहीं है ब्लैक फंगस, बस समय रहते उपचार की जरुरत
एम्स रायबरेली के निदेशक डॉ. अरविंद राजवंशी के अनुसार, म्यूकर माइकोसिस का उपचार है। एंटी फंगल दवाओं से इसका इलाज किया जा सकता है। साथ ही जरुरत पड़ने पर सर्जरी के जरिए मरीज को राहत दी जा सकती है। मगर डॉक्टर तक पहुंचने में देरी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो मरीज की जान भी जा सकती है। हां वो यह मानते हैं कि एंटीबायोटिक बिना चिकित्सक के कहे लेना सही नहीं है, परिणाम भी घातक ही निकलते हैं।

इन्हें फंगस से खतरा ज्यादा
कैंसर के रोगी, डायबिटीज के रोगी, हाइपोथायराइड के मरीज, ट्रांसप्लांट के मरीज, वायरल इंफेक्शन के मरीज, बैक्टीरियल इंफेक्शन के मरीज, एचआईवी, टीबी, कोविड इंफेक्शन के मरीज, पोस्ट कोविड मरीज, कीमोथेरेपी, स्टेरॉयड थेरेपी, इम्युनोसप्रेशन थेरेपी के मरीजों में ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा रहता है।

यहां पहुंचकर हो जाता है जानलेवा
आंख में फंगस पहुंचने पर भी नजर अंदाज करने से यह दिमाग और आंख के बीच की हड्डी को तोड़ देता है। इस हड्डी को आर्बिट रूट कहते हैं। इसी को तोड़कर फंगस ब्रेन में पहुंच जाता है। ब्रेन में मौजूद सीएसएफ फ्ल्यूड में इंफेक्शन कर देता है। ऐसे में मरीज फंगल इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ जाता है। ऐसी स्थिति में पहुंचने पर 70 से 80 फीसद मरीज की जान चली जाती है। इसके अलावा संक्रमण जब तक नाक में रहता है, तब तक इलाज संभव है। ब्लैक फंगस के मस्तिष्क तक नहीं पहुंचना चाहिए। ये जब मस्तिष्क में पहुंच जाता है, तब कैवरनस साइनस थ्रोम्बोसिस करता है। इसमें दिमाग की जो नसें खून वापस लेकर हृदय तक आती हैं, वो चोक हो जाती हैं। खून का थक्का बनने के कारण मस्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो जाती है, जो मौत का बड़ा कारण है। वहीं खून में फंगस होने पर सेप्टीसीमिया का भी खतरा बढ़ जाता है। इसमें भी 70 से 80 फीसद डेथ रेट है।

कौन सी जांचें हैं अहम?
लक्षण दिखने का एहसास होने पर तत्काल अस्पताल पहुंचना चाहिए। डॉक्टर से संपर्क कर उसे सीटी स्कैन पीएनएस कराना चाहिए। साथ ही नेजल इंडोस्कोपी करा कर बीमारी को मात दें। वहीं, बीमारी बढ़ने पर डॉक्टर दिक्कतों के आधार पर अन्य जांच कराएंगे।

कफ में कालापन भी फंगस का संकेत
ब्लैक फंगस की चपेट में आने पर शुरुआती लक्षण तो नाक बंद होना, बहना या कालापन और आंखों में लालिमा हो सकती है। संक्रमण का स्तर गंभीर होने पर बलगम में कालापान, खून की उल्टी, बेहोशी इत्यादि की समस्या शुरू हो सकती है। ऐसे में कोरोना के जो मरीज स्वस्थ होकर घर पर आराम कर रहे हैं, वो अपने स्वास्थ्य की निगरानी करें। कोरोना संक्रमण के बाद व्यक्ति के लिए पहले 30 दिन बहुत अहम होते हैं।

यह है ब्लैक फंगस के आम लक्षण
मुंह या गालों के आसपास सुन्नपन महसूस होने पर भी ध्यान दें। एक तरफ सूजन, पैरालिसिस, लालिमा, सुन्नपन होने जैसे लक्षण भी ब्लैक फंगस के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं। मासंपेशियों में अचानक कमजोरी, लार टपकाना भी फंगस इंफेक्शन का लक्षण हो सकता है।

दांत-जबड़ों में दर्द, हो जाएं सतर्क
ब्लैक फंगस के कारण व्यक्ति के दांतों या जबड़े में दर्द महसूस हो सकता है। चेहरे पर सूजन आ सकती है। ब्लैक फंगस के कारण हड्डियों में रक्त का संचार बंद हो जाता है, जिससे उसमें गलन शुरू हो जाती है।इलाज में देरी होने पर व्यक्ति का दांत या जबड़ा भी निकालना पड़ सकता है। वहीं, आंत-किडनी पर भी असर डालता है।

क्या पाया है देश के अन्य इलाकों के जानकारों ने?
इंदौर के एमजीएमएमसी प्रो वीपी पांडेय ने ब्लैक फंगस के 210 मरीजों पर शोध करके कुछ चौकाने वाली दवाओं का खुलासा किया।

यह रही है शोध की अहम बातें
– एंटीबायोटिक का प्रयोग हर किसी ने किया (100% – शतप्रतिशत),
– 14% ने स्टेरॉयड नही प्रयोग किया,
– 21 % मरीज नॉन डायबिटिक बने,
– 36 % घर पर ही रहे,
– ऑक्सीजन का प्रयोग सिर्फ 52% ने किया,
-15% मरीज की उम्र 40 साल से कम
– स्पष्ट है स्टेरॉयड व डायबिटिक ही ब्लैक फंगस का कारण नही है।