विश्व बंधुत्व व विश्व शान्ति का संदेश देता है शांतिपाठ : आचार्य चंद्र शेखर शर्मा
दिल्ली : [मामेंद्र कुमार] केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में आयोजित 242 वे राष्ट्रीय आर्य बेवीनार में ” शान्ति पाठ में विश्व बन्धुत्व का संदेश” विषय पर आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा(ग्वालियर)ने ब्रह्माण्ड और पिंड परक विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की।आचार्य जी ने कहा कि यजुर्वेद के 36/17 वॉं वेदमंत्र शान्तिपाठ के रुप में सुप्रसिद्ध है।इस महान ऋचा में विश्व शान्ति और विश्व बन्धुत्व के 11 मंगलकारी महान सूत्र समाहित हैं।
1- ” ओं द्यौः शान्तिः-” यह ब्रह्माण्ड का सूर्य देवता सदा अपनी दीप्ति,प्रकाश,ऊर्जा और जीवनशक्ति के रुप में शान्ति का संदेश दे रहा है।हमारे शरीर में शिर द्युलोक है।शिर ज्ञानेन्द्रियों,कर्मेन्द्रियों,सूक्ष्मशरीर,सहस्रार चक्र का सर्वोच्च स्थान है।
2- ” अन्तरिक्षं शान्तिः-“ अन्तरिक्ष में गरजते हुए जलधर अनवरत वृष्टि करके पृथ्वी माता को जल से संतृप्त करते हैं।इसीप्रकार हमारा हृदय अन्तरिक्ष देवता है।हमारे हृदय से करुणा,दया,सेवा,सरलता,सहजता और प्रेम आदि की वर्षा हेती रहे।अतः अन्तरिक्ष शान्ति का महान स्रोत है।
3- ” पृथिवी शान्तिः-” यह पृथ्वी माता अपनी अनन्त दिव्य शक्तियों से सदा शान्ति का वरदान दे रही है।हमारे शरीर में पैर(चरण) पृथिवी से संपर्क रखते हुए शांति का अनुगमन करते हैं।
4- ” आपः शान्तिः-” संसार में सर्वत्र जल की महिमा दृष्टिगोचर होती है।हिम-आच्छादित उच्च पर्वतमालाएँ,गहनतम जल-आपन्न सागर,सरोवर,झील,कूप,नहर आदि सब जगह जल की व्याप्ति है।हमारे शरीर में सर्वत्र जल का प्रभाव है। ” जलं वै जीवनम् ” यह जल ही जीवन है,प्राण का पोषक है,शरीर का संरक्षक है।यह जल बाहर और अंदर से हमें शान्ति दे रहा है।
5- ” ओषधयः शान्तिः” पके हुए विविध अन्न (गेंहूँ,चावल,दाल आदि) हमारे जीवन में ओषधि के रूप में हैं।हमारे शरीर में शिर स्थित केश आदि ओषधि की तरह रक्षा करते हैं।
6- ” वनस्पतयः शान्तिः” वट,पीपल,गूलर,आम आदि अनेक वृक्ष वनस्पति के रुप में हमारे जीवन के साथ संबंध रखते हैं।हमारे शरीर में स्थित रोम आदि वनस्पति के प्रतिनिधि होकर शरीर की निरंतर रक्षा और शांति का वरदान देते हैं।
7- ” विश्वे देवाः शान्तिः” ब्रह्माण्ड के सभी देवतागण सूर्य,चन्द्र,आकाश,वायु,अग्नि आदि मानवजीवन में सदा शांति देते हैं।हमारे पिण्ड में प्राण,मन,बुद्धि,चित्त,हृदय आदि देवता बनकर शांति के महासागर हैं।परिवार में माता एवं पिता तथा समाज में गुरु और उपदेशक विद्वान् देवता के रुप में शांति का उपदेश देते हैँ।
8- “ब्रह्म शान्तिः” ईश्वर,वेद,ब्रह्म विद्या,अधीत ज्ञान आदि शांति के महास्रोत हैं।
9- ” सर्वं शान्तिः” इस संसार के रस-रस और कण-कण में परम शांति है।क्योंकि इसकी रचना में शांतिस्वरुप परमात्मा मौजूद है।
10- “शान्तिः एव शान्तिः” शांति ही परम शांति है।शांति से ही परम रस प्राप्त होता है।मानव जीवन में निस्पृह,निर्मम,निरहंकार होकर सब कामनाओं से मुक्त हो जाता है।तब शांति के परम रस,परम सुख,परम आनन्द की अवस्था को प्राप्त हो जाता है।यह शांति का प्रशान्त महासागर हमारे अंदर है।उसमें आत्मविभोर और आत्मसंतृप्त हो जाता है।
11- ” सा मा शान्तिः एधि” वह परम आनन्ददायक शांति मुझको प्राप्त हो और मुझमें शांति का महान साम्राज्य स्थापित हो जाये।
मेरा जीवन शांतिदूत बन जाये।मानव-मानव में शांति छा जाये।सारा संसार सब ओर से शांति का महान तीर्थ बन जाये।विश्व बन्धुत्व का भाव सबके हृदय में बस जाये।स्वार्थ से परमार्थ का भाव जग जाये।अभ्युदय के साथ निःश्रेयस के अनुगामी हो जायें।
सभी को आध्यात्मिक,आधिभौतिक और आधिदैविक त्रिविध शांति का स्वरूप प्राप्त हो जाये। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि वैदिक संस्कृति विश्वबंधुत्व व प्रेम प्यार की संस्कृति है और सबके कल्याण की कामना करती है । राष्ट्रीय मंत्री प्रवीन आर्य ने आभार व्यक्त किया । गायिका प्रवीना ठक्कर, उर्मिला आर्या,दीप्ति सपरा, राजकुमार भंडारी, सुमित्रा गुप्ता,जनक अरोड़ा,रघुनाथ आर्य, रवीन्द्र गुप्ता आदि ने भजन प्रस्तुत किये । मुख्य अतिथि डॉ आर के आर्य(निदेशक,स्वदेशी फार्मेसी) व अध्यक्ष वेदप्रकाश आर्य ने अपने विचार रखे । प्रमुख रूप से आर पी सूरी,ओम सपरा,राजेश मेहंदीरत्ता, सौरभ गुप्ता,महेंद्र भाई आदि उपस्थित थे ।