दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठे प्रदर्शनकारी किसान अब मॉनसून के लिए कर रहे हैं तैयारी
दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले प्रदर्शनकारी किसान मॉनसून के लिए तैयारी में व्यस्त हैं। प्रदर्शनकारी किसान अपने ‘टेंट’ की छतों को वर्षा के मौसम को ध्यान में रखते हुए तैयार कर रहे हैं, बैटरी चालित प्रकाश और जलजमाव से निटपने के लिए भी इंतजाम कर रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी और इसके आसपास के इलाकों में मॉनसून की पहली बारिश के बीच किसान नेताओं ने मंगलवार को कहा कि बारिश से भीषण गर्मी से राहत तो मिली लेकिन इससे कई समस्याएं भी उत्पन्न हो गई हैं। सिंघू, टिकरी और गाजीपुर प्रदर्शन स्थलों पर कई चुनौतियां हैं, जहां हजारों किसान केंद्र के नये कृषि कानूनों के विरोध में करीब सात महीने से डेरा डाले हुए हैं। प्रदर्शनकारी किसानों के समक्ष जो चुनौतियां हैं उनमें राशन के भंडार को सूखा रखने, जलभराव से निपटने, बीमारियों को दूर रखने से लेकर बिजली से संबंधित दुर्घटनाओं को रोकने और किसी भी तरह की बिजली कटौती होने की स्थिति में बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करना शामिल है। किसान नेता अवतार मेहमा ने कहा, ‘‘यह सच है कि बारिश से हमें गर्मी से कुछ राहत मिलेगी, लेकिन मानसून की अपनी समस्याएं हैं। टेंट उखड़ जाते हैं। बारिश के कारण पानी जमा होता है जिससे बीमारी पैदा करने वाले मच्छरों उत्पन्न होते हैं।”
प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा बारिश से मुकाबले के लिए किये जाने वाले उपायों में से एक उन संरचनाओं को मजबूत करना शामिल है जिनमें वे रह रहे हैं। एक अन्य किसान नेता लखबीर सिंह ने कहा, ‘‘हमने अपने टेंटों का नवीनीकरण किया है। तिरपालों को अधिक मजबूत छतों से बदल दिया गया है। साथ ही, बड़ी संख्या में टेंट को जमीन में खोदकर खंभों के साथ स्थिर संरचनाओं में बदल दिया गया है।” मेहमा ने कहा कि उनके “साधारण टेंट” को लोहे की छतों के साथ “पक्के ढांचे” में बदल दिया गया है। ये संरचनाएं प्रदर्शनकारियों के साथ-साथ उनके राशन के भंडार को बारिश से बचाएंगी। मेहमा ने कहा, ‘‘हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि राशन इन कमरों में रखा जाए और ऊंची सतहों पर रखा जाए ताकि जलभराव होने की स्थिति में यह सुरक्षित रहे।” हाल ही में टिकरी सीमा पर करंट लगने से 46 वर्षीय किसान की मौत ने चिंता बढ़ा दिया है। मेहमा ने कहा, ‘‘हम इधर-उधर से तारों को जोड़कर बिजली का प्रबंधन कर रहे हैं। खुले तार अक्सर दुर्घटनाओं का कारण बन सकते हैं, इसलिए हम इसे ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि बारिश में दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाएगी।” मॉनसून की बारिश के साथ ही शहर के सबसे अच्छे हिस्सों में भी बार-बार बिजली कटौती होती है और राजमार्गों पर ये अस्थायी टाउनशिप कोई अपवाद नहीं हैं।
लखबीर सिंह ने कहा, ‘‘बार-बार बिजली कटौती के बारे में हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन हम बैटरी के साथ-साथ सोलर लाइट का उपयोग करने वाली आपातकालीन रोशनी की व्यवस्था करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने आपात स्थिति में इन विरोध स्थलों पर कुछ स्थानों पर इनवर्टर और जनरेटर भी लगाए हैं।” मेहमा ने कहा कि इस मौसम में कुछ क्षेत्रों में जलभराव अपरिहार्य है, लेकिन स्वयंसेवकों को मच्छरों और अन्य कीड़ों के प्रजनन को रोकने के लिए जलजमाव रोकने और फॉगिंग करने के लिए तैनात किया गया है। मेहमा ने कहा, ‘‘सरकारों ने हमारी मदद नहीं की है। हम शुरू से ही सफाई और स्वच्छता सुनिश्चित करते रहे हैं।” किसानों ने कहा कि उन्होंने हाड़ कंपाने वाली सर्दी, भीषण गर्मी और अब मानसून से निपटने के लिए तैयार हैं। गाजीपुर सीमा पर काफी गतिविधियां चल रही हैं जहां राकेश टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के बैनर तले लगभग 4,000 से 5,000 प्रदर्शनकारी डेरा डाले हुए हैं। बीकेयू के सह-मीडिया प्रभारी सौरभ उपाध्याय ने कहा, ‘‘हमने उन किसानों को भी सूचित किया है जो आने वाले दिनों में अपने गांवों से यहां विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे बारिश के दौरान अपने ट्रैक्टर-ट्रॉली पर सोने और खाना पकाने की सुविधा के साथ तैयार होकर आ सकें।” उन्होंने कहा कि दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर एक फ्लाईवे पर और यूपी गेट पर धरना दे रहे प्रदर्शनकारी किसान रोजाना टैंकरों के जरिए गाजियाबाद से पीने योग्य पानी खरीद रहे हैं।
उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन भी काफी हद तक मददगार रहा है। किसानों का कहना है कि वे किसी भी दबाव (प्राकृतिक या मानव निर्मित) के आगे नहीं झुकेंगे। वे अब मानसून सत्र के माध्यम से संसद के बाहर नये सिरे से प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे हैं, जिसके बाद वे उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भारी संख्या में रैली करेंगे। मेहमा ने कहा, ‘‘भाजपा की इन दोनों राज्यों में मजबूत स्थिति है, जिससे पार्टी को लगता है कि वह पूरे देश में शक्तिशाली है। दुर्भाग्य से विपक्ष अपना काम नहीं कर रहा है, इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा विपक्ष के रूप में उभरा है। हम सितंबर में इन दोनों राज्यों में रैलियां निकालने की योजना बना रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भाजपा वहां चुनाव नहीं जीत पाए।” किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिससे उन्हें डर है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली खत्म हो जाएगी और उन्हें बड़े कार्पोरेट की दया पर छोड़ दिया जाएगा। इन कानूनों को प्रमुख कृषि सुधारों के रूप में पेश करने वाली सरकार के साथ 10 दौर से अधिक की बातचीत दोनों पक्षों के बीच गतिरोध को तोड़ने में विफल रही है, जिसके परिणामस्वरूप आंदोलन जारी है।