भय,लज्जा व शंका ही ईश्वरीय चेतावनी है -आचार्य विजय भूषण आर्य
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “ईश्वर प्रेरणा कब,क्यों कैसे करता है” व क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिन पर स्मरण किया गया । यह कॅरोना काल में परिषद का 253 वा वेबिनार था ।
वैदिक विद्वान आचार्य विजय भूषण आर्य ने कहा कि आर्य समाज का उद्देश्य है शुद्ध ज्ञान का प्रचार प्रसार करना । वेदों को पढ़ने के साथ साथ उन मंत्रों के भावार्थ को भी यदि हम समझें तो समझना चाहिए कि हमारा वेद पढ़ना सार्थक हो गया ।
ईश्वर के बारे में किसी बात का सम्बन्ध आंख बंद कर के नहीं जोड़ा जा सकता । इसके लिए उचित शब्दों का चुनाव करना और बात को वैदिक सिद्धांतों के अनुसार करने वाले कुछ विरले लोग ही होते हैं । सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा इस विषय पर जो सैद्धांतिक प्रमाण दिये गये हैं, उनका प्रमाण आचार्य जी ने देते हुए कहा कि ईश्वर आपको स्वयं प्रेरणा नहीं करता । सत्यार्थ प्रकाश के सातवें समुल्लास में ऋषि लिखते हैं – जब आत्मा मन और मन इन्द्रियों को किसी विषय में लगाता तभी भीतर से बुरा काम करने पर भय ,शंका, लज्जा आदि तथा शुभ काम करने पर आनंद उत्साह आदि उत्पन्न करता है । यह ईश्वर की तरफ़ से है । इसका अर्थ यह हुआ कि पहले कर्म करने की शुरुआत हम करते हैं । इस बात से यही सिद्ध होता है कि जब हम पहले किसी कार्य को मन में प्रारंभ करते हैं, तब ईश्वर हमें बुरे काम के करने में भय ,शंका और लज्जा उत्पन्न करता है ।
महर्षि दयानन्द जी ने आगे इस बात को और भी स्पष्ट किया है । वे कहते हैं जैसे सेना सेनाध्यक्ष की आज्ञा अथवा प्रेरणा से सेना अन्यों को मार डाले, तो वह सेना अपराधी सिद्ध नहीं हो सकती । इसका मतलब यही तो है कि जब हम स्वतंत्रता पूर्वक कर्म करते हैं, तभी ईश्वर हमें उस कर्म का फल देने का अधिकारी होता है और यदि ईश्वर ही हमें कर्म करने में प्रेरित करे तो उसका फल भोगने वाला ईश्वर होना चाहिये न कि जीव ।
अनेक और भी छोटे छोटे उदाहरण देकर आचार्य जी ने वेद के इस सिद्धांत को समझाते हुए कहा कि यदि आप किसी को शुभ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं तो आप भी उस शुभ फल के भागी दार होते हैं इसके विपरीत यदि किसी को अशुभ कर्म करने में प्रेरित करते हैं तो उसका भी फल प्रेरणा करने वाले को भोगना पड़ता है । ईश्वर कर्म फल से सर्वथा मुक्त है ।इसलिए वो किसी को भी प्रेरणा तब तक नहीं करता , जब तक वह उस कर्म का आरंभ मन में शुरू न कर दे ।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की 114 वी जयंती पर स्मरण करते हुए महान देशभक्त व क्रांतिकारियों का सिरमौर बताया । उन्होंने कहा कि नई युवा पीढ़ी को ऐसे देश भक्त सेनानियों के बलिदान को सदैव याद रखकर प्रेरणा लेनी चाहिए । राष्ट्रीय मंत्री प्रवीन आर्य ने पाठ्य पुस्तकों में क्रांतिकारियों की जीवनी पढ़ाने की मांग की ।
मुख्य अतिथि डॉ. रमाकान्त गुप्ता व अध्यक्ष रवीन्द्र गुप्ता ने वेद मार्ग अपनाने पर बल दिया ।
गायिका प्रवीना ठक्कर, उर्मिला आर्या,ईश्वर देवी,मर्दुल अग्रवाल, सुखवर्षा सरदाना, चंद्रकांता आर्या,किरण शर्मा, कुसुम भंडारी, प्रेम हंस आदि ने मधुर भजन प्रस्तुत किये । प्रमुख रूप से आनन्द प्रकाश आर्य,महेंद्र भाई, दीप्ति सपरा, जवाहर भाटिया, डॉ सुषमा आर्या,अमरनाथ बत्रा,संध्या पाण्डेय आदि उपस्थित थे ।