जानिए, भगवान शिव क्यों धारण करते हैं त्रिशूल

Spread This

भगवान शिव स्वयं महाकाल हैं। सृष्टि का सृजन, संचालन और विनाश का वही आधार हैं।पौराणिक मान्यता के अनुसार संपूर्ण ब्रह्माण्ड की सारी शक्ति और ऊर्जा के एकमेव स्रोत शिव ही हैं। ब्रह्माण्ड में स्थित सभी ग्रह, नक्षत्र और तारे शिव में ही समाहित हैं। शक्ति और शिव के सम्मिलन का परिणाम ही सृष्टि है। शिव का उग्र रूप ही सृष्टि का विनाश है। भगवान शिव का तीसरा नेत्र संपूर्ण सृष्टि में प्रलय उत्पन्न कर सकता है। फिर भी शिव शम्भू अपने हाथों में त्रिशूल धारण करते हैं। आखिर भगवान शिव को किसी अस्त्र या शस्त्र की क्या आवश्यकता है। इस प्रश्न का उत्तर विभिन्न मत और संप्रदाय के लोग भिन्न-भिन्न तरह से देते हैं। आइए जानते हैं भगवान के शिव के त्रिशूल धारण करने का कारण और उनके त्रिशूल के रहस्य के बारे में…

भगवान शिव के त्रिशूल धारण करने का रहस्य

1-भगवान शिव का त्रिशूल त्रिगुणों सतगुण, रजगुण और तमगुण का प्रतीक है, जिनके सम्मिलन और विगलन से ही सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय होता है।

2-भगवान शिव के त्रिशूल के तीन शूल सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार के प्रतीक हैं। देवाधिदेव महादेव ही स्वयं महाकाल हैं, सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार उनमें ही समाहित है।

3-शंकर जी का त्रिशूल मानव जीवन के तीनों प्रकार के कष्टों दैहिक, दैविक और भौतिक का विनाशक है।

4-मान्यता है कि भगवान शिव शम्भू का त्रिशूल महाकाल के तीनों कालों वर्तमान, भूत और भविष्य का प्रतीक है।

5-योग शास्त्र में भगवान शिव को आदियोगी माना गया है। उसके अनुसार शंकर जी का त्रिशूल वाम भाग में स्थित इड़ा, दक्षिण भाग में स्थित पिंगला तथा मध्य भाग में स्थित सुषुम्ना नाड़ियों का प्रतीक है।

6-शैव अद्वैत वेदान्त में शंकर जी के त्रिशूल को पिंड, ब्रह्मांड और परम् शक्ति का प्रतीक माना जाता हैं।

डिसक्लेमर

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।’