सामने आया मुगलकालीन किले का हैरान कर देने वाला सच, परिसर में सूखते हैं कपड़े और खड़ी होती है बाइक

Spread This

 राजधानी दिल्ली में मुगलकालीन दौर की बेहतरीन इमारतें और धरोहर हैं, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इस कड़ी में राजधानी की बाहरी सीमा के एक गांव में 17वीं शताब्दी का एक ऐसा किला भी है, जो देखभाल के अभाव में खंडहर बन चुका है, लेकिन पुरातात्विक लिहाज से इसकी महत्ता कम नहीं है। कंझावला से महज चार किमी दूर जौन्ती गांव में बना मुगलकालीन शिकारगाह ऐतिहासिक धरोहर के रूप में आज भी इतिहास के पन्नों की ओर ले जाता है। ग्रामीण तो इसे गांव के किले के नाम से जानते हैं, लेकिन यह मात्र एक किला ही नहीं, बल्कि मुगलों का शिकारगाह और अखाड़ा हुआ करता था। यहां बादशाह अकबर से लेकर शाहजहां शिकार के लिए आते थे और विश्राम करते थे। मुगल शहंशाह शाहजहां के लिए तो यह शिकारगाह उनके पसंदीदा अखाड़ों में से एक था। यह किला घने जंगल के बीच था, लेकिन आबादी बढ़ने के साथ इसका अस्तित्व खतरे में आ गया।

स्थानीय लोगों के अनुसार ऐतिहासिक धरोहर खंडहर होने के बाद लोग यहां मवेशियों को रखते हैं और उपले सुखाए जाते हैं। वहीं कुछ लोग कपड़े सुखाने के लिए इस स्थान का प्रयोग करते हैं। गांव के निवासी विनोद के अनुसार पर्यटन के रूप में विकास किया जाने को लेकर कई बातें हुई, लेकिन आजतक कुछ काम नहीं हुआ। स्थानीय निवासी कविता के अनुसार इस गांव को तत्कालीन सांसद उदित राज ने आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद भी लिया था। इसके बाद भी इमारत के हालात में सुधार नहीं हुआ।

 

jagran

शिकारगाह और जोहड़ के बीच सुरंग

बुजुर्ग ग्रामीणों के मुताबिक, शिकारगाह के पास ही मौजूद प्राचीन जोहड़ भी हुआ करता था। शिकारगाह के एक हिस्से में भूमिगत तहखाना भी मौजूद है, जिसको लेकर लोगों का मानना है कि इससे जुड़ा हुआ एक सुरंग इसे जोहड़ से जोड़ता है, जिसमें पानी मौजूद है। लोगों का यह भी कहना है कि शहर से दूर होने के कारण इसकी हालत ऐसी है और इसे उपेक्षित रखा गया है। ऐसे में पर्यटन व रोजगार के लिहाज से भी इसे बेहतर बनाने की मांग चल रही है।

jagran

घने जंगल के बीच बना शिकारगाह

जानकारों के अनुसार, प्राचीन समय में बनाए गए ऐसे शिकारगाह को घने जंगलों के बीच बनाया जाता था, ताकि जंगल में मौजूद पशु-पक्षियों का शिकार करने में आसानी हो। मुगलों के जमाने में यहां जौंती और उसके आसपास के सभी गांव जंगली क्षेत्र थे। यहां दूर-दूर तक किसी का निवास नहीं था। इन घने जंगल में मृग, काला हिरण, चिकारा, बैल व कई अन्य प्रकार के जानवर होते थे। यही वजह रही कि दिल्ली के इस बाहरी छोर को मुगल बादशाहों ने शिकारगाह के निर्माण के लिए चुना था।

jagran

पर्यटन व रोजगार की संभावना

लोगों के अनुसार ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण को लेकर वर्ष 2018 में आर्ट व कल्चरल विभाग ने प्रस्ताव बनाकर दिल्ली सरकार को भेज दिया था, लेकिन आजतक योजना को विस्तार नहीं मिल सका। ऐसे में मुगलकालीन 17वीं शताब्दी का शिकारगाह अतिक्रमण में कैद होकर रह गया है। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि इसके विकास से गांव का भी भला हो जाता, लेकिन इस योजना पर अभी तक कोई काम ना होने से उनमें नाराजगी है। फिलहाल ग्रामीणों की मांग है कि इसे पर्यटन क्षेत्र बनाया जाए, जिससे गांव का विकास संभव है और रोजगार की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।