कोरोना की दूसरी लहर में डा विकास ने उठाया मदद का बीड़ा तो ग्रामीणों ने घरों को ही बना लिया ‘अस्पताल’

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नई दिल्ली :  कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान एक समय ऐसा आया था जब अस्पतालों में बिस्तर भर गए थे, लोग आक्सीजन के लिए दो-तीन दिन तक लाइन में लगे रहते थे। रेमडेसिविर जैसी दवा, आक्सीजन कंसंट्रेटर आदि की कालाबाजारी हो रही थी। दिल्ली के हर कोने से लोगों के मरने की खबरें आ रही थी। अपनों ने ही अपनों से दूरी बना ली थी। ऐसे में नांगल ठाकरान निवासी डा विकास ठाकरान के भरोसे ग्रामीणों ने घरों को ही छाटा अस्पताल बना दिया था।

डा विकास ने अपने गांव के लोगों क साथ मिलकर ऐसा सुरक्षा कवच तैयार किया था कि लोग सभी मनमुटाव भूल कर एकजुट हो गए थे। जहां अलग-अलग जगह लोग परिवार के संक्रमित सदस्यों से दूर भाग रहे थे वहीं दूसरी तरफ इस गांव के लोग दिल्ली, हरियाणा में रहने वाले अपने उन रिश्तेदारों को घर लेकर आ रहे थे, जो कोरोना संक्रमित हो गए थे। क्योंकि कहीं न कहीं उनको भरोसा था कि डा विकास उनको इस संक्रमण से बचा लेंगे। और डाक्टर ने बचाई भी। इसी वजह से स्वतंत्रता दिवस पर आज उनको गांव के लोग सम्मानित भी करेंगे।

कालरा अस्पताल के कार्डियोलाजिस्ट डा विकास ठाकरान ने बताया कि अप्रैल की शुरुआत में जब वह ग्रामीणों को कहीं भी बिस्तर नहीं दिला पा रहे थे तो उन्हें ग्रामीणों के घरों में ही बिस्तर बनाकर इलाज देने का प्लान बनाया। उन्होंने बताया कि इसके लिए सबसे पहले वाट्सएप ग्रुप बनाकर गांव के युवाओं व हर परिवार के एक सदस्य को जोड़ा।

इनमें गांव के डाक्टर, नर्स, सफाई कर्मचारी, पलंबर, इलेक्टिशियन आदि शामिल थे। इसके बाद उन्हें कोरोना संक्रमण के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उनके मन में जो वहम थे उन्हें दूर किया व उन्हें जागरूक कर वालंटियर बना दिया। इसके बाद वालंटियर अपने आसपास के घरों की जानकारी इकट्ठा करने लगे। जिस भी घर में कोरोना संक्रमित मिलते, उसकी जानकारी वाट्सएप ग्रुप पर दी जाती।

इसके बाद डा विकास फोन पर गांव के वालंटियर को इलाज बताते व वालंटियर डाक्टर के निर्देश अनुसार मरीजों का इलाज करते। साथ ही संक्रमित के घर को सैनिटाइज कर उन्हें मास्क व सैनिटाइजर भी मुहैया करवाते।

गांवों में कोरोना संक्रमितों की सुध लेने वाला कोई नहीं था, ऐसे में डा विकास ठाकरान अपनी ड्यूटी के साथ-साथ रात भर लोगों को फोन पर सलाह देते थे। उनकी इस मदद को देखते हुए लोगों को उन पर इतना भरोसा हो गया था कि वह दोस्तों व रिश्तेदारों को भी उन्हीं से इलाज करवाते थे।

डा विकास ने बताया कि गांव के लोग इतने जागरूक हो गए थे कि खुद तो कोरोना को मात दे ही रहे थे वे अपने साथ-साथ अपने रिश्तेदारों की भी मदद कर रहे थे। उन्होंने बताया कि गांव के होशियार सिंह ने तो अपने घर के टाप फ्लोर पर चार संक्रमित रिश्तेदारों को रख लिया था। उनका इलाज यहीं पर हुआ व यहां से ठीक होकर गए। वहीं गांव के सहदेव भी अपने बहन व भांजे को गांव में लेकर आ गए थे। उन्होंने गांव में ही कोरोना को मात दी।

दुश्मनी भूलकर एकजुट हुए लोग

डा विकास ने बताया कि महामारी के दौरान जब लोग उन लोगों के घरों में भी गए जिनसे बीते वर्षों कोई झगड़ा या विवाद हो रखा था तो लोग सारी दुश्मनी भूलकर एकजुट हो गए।डा विकास ने बताया कि महामारी के दौरान जब लोग उन लोगों के घरों में भी गए जिनसे बीते वर्षों कोई झगड़ा या विवाद हो रखा था तो लोग सारी दुश्मनी भूलकर एकजुट हो गए।

खुद की थी एंबुलेंस की सुविधा

ग्रामीणों ने मरीजों की सेवा के लिए एक मुफ्त एंबुलेंस की सुविधा भी कर रखी थी। साथ ही गांव के लोग खुद के पैसों से दवा, मास्क व आक्सीजन सिलेंडर खरीदकर ले आए थे। जिस भी मरीज की आक्सीजन 90 से नीचे पहुंचती थी वालंटियर उनके घर पर आक्सीजन सिलेंडर पहुंचा देते थे। डा विकास ने बताया कि उस दौरान टेस्टिंग पर ज्यादा जोर दिया गया था। जो भी कोरोना पाजिटिव मिलता उसे होम आइसोलेट कर दिया जाता था व उसे घर पर ही इलाज दिया जाता था। नतीजा यह हुआ कि गांव में काफी लोगों की जान बच सकी। डा विकास ने बताया कि गांव में टीकाकरण पर जोर दिया गया है। साथ ही तीसरी लहर के लिए आक्सीजन सिलेंडर अभी से खरीद कर रख लिए गए हैं।