तालिबान के अफगानिस्तान पर इतनी हाई स्पीड से कब्जे के पीछे इन देशों का रहा है हाथ!
तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद से ही बार इस ये सवाल उठ रहा है कि आखिर कैसे इतनी जल्दी इस संगठन ने अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया है। इस सवाल का जवाब अमेरिका को भी जानना है और पूरी दुनिया भी इसको जानना चाहती है। तालिबान की इस तेजी ने इस बात का शक गहरा दिया है कि ये केवल तालिबान के बस की बात नहीं थी और इसमें किसी दूसरे देश या संगठन का भी बराबर का हाथ था। अफगानिस्तान के पड़ोसी तीन देश तालिबान के समर्थन में जिस तरह से सामने आए उससे इन देशों पर अंगुली उठना बेहद स्वाभाविक था। ये तीन देश चीन, पाकिस्तान और रूस हैं।
रूस ने मंगलवार को ही ये बयान दिया है कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार से बेहतर तालिबान का आना है। ये किसी और ने नहीं, बल्कि अफगानिस्तान में राजदूत दिमित्री झिरनोव ने कहा है। उन्होंने कहा है तालिबान के काबुल पर कब्जे को वो बेहतर मानते हैं। रूस का बयान अपने आप में काफी दिलचस्प है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि पिछले माह तालिबान के प्रवक्ता ने मास्को में ही एक प्रेस कांफ्रेंस कर अफगानिस्तान में अपनी सरकार के बनने की बात कही थी। मास्को में तालिबान नेता ने ये प्रेस कांफ्रेंस पहली बार नहीं की थी, बल्कि इससे पहले भी वो कई प्रेस कांफ्रेंस कर चुके थे। इसलिए ही ये बात उठ रही है कि रूस ने कहीं न कहीं अमेरिका से अपना पुराना बदला ले लिया है।
आपको बता दें कि जब रूस ने अफगानिस्तान में डेरा डाला था, तब अमेरिका ने उसके खिलाफ स्थानीय स्तर पर लड़ाकों को तैयार किया था। उसकी बदौलत रूस को बाहर जाना पड़ा था। इसके बाद तालिबान खुद इतना मजबूत हो गया कि उसने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। 9/11 के हमले के बाद जब अमेरिका ने तालिबान पर पर ताबड़तोड़ हमले किए तो उसको एक सीमित दायरे में सिमटने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
पिछले वर्ष एकाएक स्थिति तब बदली जब अमेरिका ने तालिबान के साथ एक समझौता किया, जिसमें अमेरिकी और नाटो फौज की वापसी का रोडमैप दिया गया था। इस वर्ष अप्रैल में तालिबान ने हमलों का सिलसिला तेज किया था और अगस्त के मध्य में आकर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। बता दें कि तालिबान के साथ हुए समझौते में इस बात का भी जिक्र था कि वो अमेरिकी जवानोंं पर हमला नहीं करेंगे और अफगान सेना पर हुए हमले में अमेरिकी सेना बीच में नहीं आएगी।