अगर पीएम मोदी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी बोल सकते हैं…अमित शाह ने हिन्दी दिवस पर ऐसे रखी बात
गृह मंत्री अमित शाह ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हिंदी भाषा की वकालत की। शाह ने कहा कि हिंदी का किसी भी स्थानीय भाषा से कोई मतभेद या अंतर्विरोध नहीं है। राजभाषा हिंदी भारत की सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है और इसका विकास एक दूसरे के परस्पर सहयोग से ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि आज के दिन हमें ये मूल्यांकन करना चाहिए कि हमने देश की राजभाषा व स्थानीय भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन के लिए क्या किया।
शाह ने कहा कि वो जमाना गया जब हिंदी बोलने में संकोच होता था, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी हिंदी में बोलते हैं। किसी भी व्यक्ति के मूल्यांकन का आधार उसके विचार, कार्य, बुद्धिमत्ता, कर्मठता और निष्ठा होनी चाहिए, भाषा तो सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना में आत्मनिर्भर शब्द सिर्फ उत्पादन व वाणिज्यिक व्यवस्थाओं के लिए नहीं है, हमें भाषा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनना है।
गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने नई शिक्षा नीति में राजभाषा व सभी भारतीय भाषाओं को समाहित कर इनके संरक्षण व संवर्धन के लिए बच्चों की पाँचवी तक की शिक्षा उनकी मातृभाषा में कराने का विशेष आग्रह किया है। साथ ही तकनीकी पाठ्यक्रमों का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोई भी बाहर की भाषा हमें भारत की महान संस्कृति व गौरव से परिचित नहीं करा सकती, देश के वैचारिक पिंड से नहीं जोड़ सकती। सिर्फ मातृभाषा ही एक बच्चे को उसकी स्थानीय जड़ों से जोड़कर रख सकती है। जिस दिन आप बच्चे को अपनी मातृभाषा के ज्ञान से वंचित करोगे वो अपनी जड़ों से कट जाएगा। शाह ने कहा कि देश में एक समय ऐसा आया जब लगता था कि भारत भाषा की लड़ाई हार जाएगा। लेकिन भारत झुकने वाला नहीं है, भारत सदियों तक अपनी राजभाषा व स्थानीय भाषाओं को संजोकर रखेगा।
शाह ने कहा कि हर प्रदेश के इतिहास का अनुवाद व भावानुवाद राजभाषा में होना चाहिए जिससे सिर्फ एक राज्य नहीं पूरा देश इस महान इतिहास को पढ़ सके। इसलिए गुरूवर टैगोर ने भी कहा था कि भारतीय संस्कृति एक विकसित सतदल कमल की तरह है, जिसकी प्रत्येक पंखुड़ी हमारी स्थानीय भाषा है और कमल राजभाषा है। उन्होंने कहा कि जो लोग कहते हैं कि हमारी मातृभाषा और राजभाषा व्यक्तिव के विकास में बाधक हैं, मैं उनको कहना चाहता हूँ कि ज्ञान की अभिव्यक्ति का मातृभाषा से अच्छा माध्यम कोई दूसरा हो ही नहीं सकता।