जल,वायु,अग्नि व पर्यावरण की शुद्धि आवश्यक -अनिता रेलन

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दिल्ली, मामेंद्र कुमार : बुधवार 22 सितम्बर 2021,केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “वेदों में पर्यावरण” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कोरोना काल में 286 वां वेबिनार था। मुख्य वक्ता अनिता रेलन ने कहा कि वेदों में जल,वायु,पृथ्वी, आकाश को शुद्ध रखने की बात की गई है।यज्ञ से वायुमंडल शुद्ध होता है।यज्ञ में उच्च कोटि की सामग्री व घी का प्रयोग करना चाहिए।उन्होंने बताया की भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र जिसकी संस्कृति वेदों पर आधारित है और वेद भारत के प्राचीन ग्रंथों में से एक हैं जिनकी रचना चार ऋषियों अग्नि,वायु,आदित्य व अंगिरा ने की थी वेद चार हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद,अथर्ववेद इन बातों को आधार बनाते हुए पर्यावरण पर चर्चा की गई ऋग्वेद जो की प्राचीनतम वेद ग्रंथ है अग्नि सूर्य इंद्र वरुण देवताओं की आराधना का वर्णन है इसमें गायत्री मंत्र जो चारों वेदों का सर्वश्रेष्ठ मंत्र कहा जाता है जिसमें 24 अक्षर है उस पर जोर दिया गया उन 24 अक्षरों जोकि हमारी 24 शिक्षा के प्रतीक हैं।वेद शास्त्र उपनिषद के माध्यम से जो शिक्षाएं मनुष्य को दी जाती हैं वह इन 24 अक्षरों में निहित है यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान वेद सामवेद संगीत जिसमें समाहित हैं और अथर्ववेद में रोग निवारण विज्ञान कृषि विज्ञान मंत्र तंत्र को खोजा जा सकता है आदि का वर्णन किया गया है।

 

इसमें पृथ्वी पर शुद्ध जल रहने की कामना की गई है सब मिलाकर वेदों में जल पृथ्वी वायु अग्नि वनस्पति अंतरिक्ष के प्रति असीम श्रद्धा भाव रखा गया है इन तत्वों से मानव शरीर निर्मित शरीर में एक भी तत्व का संतुलन बिगड़ जाए तो शरीर अस्वस्थ हो जाता है वही हाल प्रकृति का है धरती पर जीवन पालन के लिए पर्यावरण प्रकृति का उपहार है पर्यावरण अपने आप में वह प्रकृति तत्व है जिसे हम प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जाने अनजाने चारों ओर से उपभोग करते हैं और वेदों में मूलत इन पांचों भूतों को देवी शक्ति के रूप में स्वीकारा गया है पर्यावरण संबंधित रिचा अधिकतर यजुर्वेद में मिलती हैं और पर्यावरण को देखते हुए अपना एक अलग महत्व यजुर्वेद में पृथ्वी को ऊर्जा देने वाली कहां गया है और मंत्र और प्रार्थना की गई है कि पृथ्वी का दोहन उतना ही किया जाए जितना वह सह सके पृथ्वी के क्षत-विक्षत करने पर उसके मर्म स्थान को चोट ना पहुंचे ऐसा अथर्ववेद कहता है अथर्व वेद में यह भी कहा गया कि अग्नि से धूम उत्पन्न होता है धूम से बादल और बादल से वर्षा वेदों में अग्नि तत्व को अधिक शक्तिशाली और व्यापक माना गया है इन सबके साथ जब बात जल की आती है तो कहा जा सकता है जल के सही संतुलन से ही विदेशों में और विधाओं में यज्ञ द्वारा वर्षा के उदाहरण बहुतायत से मिलते हैं जिन वर्षों में वर्षा नहीं होती गांव वाले यज्ञ द्वारा ही हवन द्वारा ही इंद्र देवता को प्रसन्न करते हैं वैदिक रिचा द्वारा प्रार्थना की जाती है ऋग्वेद में वनस्पतियों को लगाकर वन्य क्षेत्र को बढ़ाने की बात की गई है और वायु को जीवनदायिनी शक्ति कहा गया है इसलिए वायु का स्वच्छ होना पर्यावरण की अनुकूलता के लिए परम अपेक्षित है । वेदों में वायु की स्तुति की गई है जब तक सांस तब तक आस शुद्ध वायु प्राणों के लिए औषधि है वायु को दूषित ना होने दिया जाए । केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि मनुष्य के स्वस्थ व दीर्घ जीवन का आधार शुद्ध पर्यावरण ही है।आज की सबसे बड़ी चुनौती शुद्ध वायु,शुद्ध जल,शुद्ध आहार है,तभी मानव जीवन सुरक्षित रह सकता है। अध्यक्ष डॉ कल्पना रस्तोगी ने ऑनलाइन उपस्थित वक्ताओं और गायकों का हृदय की गहराइयों से आभार व्यक्त करते हुए आयोजकों से कहा की ऐसे सुन्दर,सारगर्भित कार्यक्रम निरंतर होते रहने चाहिए ताकि जनमानस में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आए। राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए घर घर यज्ञ,हर घर यज्ञ के साथ ही वृक्षारोपण की प्रेरणा दी। गायिका रजनी चुघ,प्रेम हंस, रवीन्द्र गुप्ता,काशीराम,संतोष चावला (लुधियाना),रचना, प्रतिभा कटारिया, जनक अरोड़ा, प्रवीना ठक्कर,रेखा गौतम आदि के मधुर भजन हुए।