योग्य संतान का निर्माण योग्य माता,पिता, गुरु द्वारा सम्भव -आचार्य विजय भूषण आर्य

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दिल्ली, मामेंद्र कुमार : केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “बच्चों का निर्माण कब और कैसे?” पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।यह कोरोना काल में 301 वाँ वेबिनार था। वैदिक विद्वान आचार्य विजय भूषण आर्य ने कहा कि बालक का निर्माण माँ के गर्भ से ही शुरू हो जाता है।बच्चों के जीवन के निर्माण  की मुख्य ज़िम्मेदारी सबसे पहले मां,उसके बाद पिता  और इसके बाद गुरु की।सभी अपने बच्चों को सर्वगुण सम्पन्न तो देखना चाहते हैं परन्तु उस के लिये आज माता पिता के पास समय नहीं है।कहलाने को तो बच्चे हमारा असली धन हैं,परन्तु हम इस असली सम्पत्ति के स्थान पर रुपये पैसे वाली सम्पत्ति को अधिक महत्व दे रहे हैं।पहले की माताओं में वीर शिवाजी की, माता जीजा बाई,भगत सिंह की माता विद्यावती,अभिमन्यु की माता सुभद्रा सुभाष चन्द्र बोस की माता प्रभा देवी,माता मदालसा, माता शकुन्तला आदि ने अपने नौनिहालों को तराशा था।उन्हें घुट्टी में संस्कार प्रदान किये थे। जीवन का निर्माण करना कोई हंसी खेल नहीं है।बच्चों को जन्म देना कोई बड़ी बात नहीं है,बड़ी बात है उन्हें बचपन से ही अच्छा इन्सान बनाना।जिस बालक को तीन योग्य और विद्वान् माता,पिता और गुरु मिल गये समझ लो वह बालक धन्य हो गया।स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में इसीलिए लिखा था- मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद।ऐसे बालक और बालिका ही आगे चलकर एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज का निर्माण करते हैं और समाज व देश की सेवा कर अपना,अपने माता-पिता और गुरु का नाम रौशन कर जीवन धन्य करते हैं।

घर परिवार में सुख शान्ति भी बुद्धि मान् माता पिता ही बनाये रख सकते हैं।वे न आपस में लड़ते झगड़ते हैं और न ही एक दूसरे को अपशब्द कहते हैं।बच्चे माता पिता के भाषण से इतना नहीं सीखते जितना उनके व्यवहार से सीखते हैं।आज के भागादौड़ी के युग में हमें अपने बच्चों के लिए समय अवश्य निकालना चाहिए ताकि हम अपने बच्चों  को अच्छा बना सकें ।कहीं ऐसा न हो कि आज की चकाचौंध में फंस कर हम अपने स्टेटस को बनाने में लगे रहें और बच्चों को हम इग्नोर करते रहें। यदि ऐसा हुआ तो कहीं  भविष्य में  हमें पछताना न पड़े।समय निकल जाने पर हमारे हाथ फिर कुछ नहीं लगेगा।

केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि बच्चों को बाल्यकाल में दिये गए संस्कार जीवन में नीव का काम करते हैं।संस्कारित बच्चे ही राष्ट्र का उज्ज्वल भविष्य है। इसलिए नयी पीढ़ी के सर्वांगीण विकास व चरित्र निर्माण पर समय रहते ध्यान देना चाहिए जिससे वह कुल,परिवार, समाज व राष्ट्र के सच्चे प्रहरी बन सके।

मुख्य अतिथि अनुपम आर्य (मंत्री,आर्य समाज हापुड़) ने कहा कि आज शिक्षा में बच्चों के संस्कारों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा यह चिंता की बात है केवल किताबी ज्ञान उसका कल्याण नहीं कर सकते।अध्यक्षता कर रही आर्य युवा नेत्री दीप्ति सपरा ने कहा कि बचपन में बताई और सिखाई हर छोटी छोटी बात एक एक ईंट का काम करती है।आसपास का वातावरण भी इस निर्माण में सहायक होता है ।राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि पुरातन गुरुकुल पद्धति सर्वोत्तम थी जो मानव निर्माण करती थी।

गायिका प्रवीन आर्या,प्रवीना ठक्कर,सुदेश आर्या,उर्मिला आर्या,रजनी चुघ,आशा आर्या, रविन्द्र गुप्ता,रेखा वर्मा,किरण सहगल, बिंदु मदान आदि ने मधुर भजन प्रस्तुत किये।प्रमुख रूप से आनन्द प्रकाश आर्य,ओम सपरा,सुशांता अरोड़ा, दमयंती गुप्ता,प्रतिभा कटारिया, जनक अरोड़ा,आर पी सूरी आदि उपस्थित थे।